क्यूँ ज़ुल्म ढा रहा हूँ मैं अपने वजूद पर कीचड़ उछालता हूँ मैं अपने वजूद पर इंकार कर के ख़ुद ही मैं अपने वजूद का ग़ुस्सा उतारता हूँ मैं अपने वजूद पर क्या चाहता हूँ ख़ुद से मुझे ख़ुद नहीं पता और ता'न छोड़ता हूँ मैं अपने वजूद पर डर है कोई चुरा न ले मुझ से कभी मुझे पहरे लगा रहा हूँ मैं अपने वजूद पर कर के ख़ुद अपने सारे सुबूतों को मुस्तरद उँगली उठा रहा हूँ मैं अपने वजूद पर 'नायाब' मुझ से फ़ैज़ उठाता है हर कोई कब दाग़-ए-बद-नुमा हूँ मैं अपने वजूद पर