कुछ अजब सा हूँ सितमगर मैं भी उस पे खुलता हूँ बदन भर मैं भी नई तरतीब से वो भी ख़ुश है ख़ूब-सूरत हूँ बिखर कर मैं भी आ मिरे साथ मिरे शहर में आ जिस से भाग आता हूँ अक्सर मैं भी अब ये पा-पोश-ए-अना काटती है लो हुआ अपने बराबर मैं भी झिलमिला ले अभी उजलत क्या है और कुछ देर हूँ छत पर मैं भी