कुछ अजब शय है सितमगर से शनासाई भी शिकवा-ए-जोर भी है जब्र-ए-पज़ीराई भी ख़ूँ-फ़िशाँ मोहर-ब-लब चाक-जिगर है हर गुल कुछ अजब रंग से आई जो बहार आई भी मुज़्दा-ए-सुब्ह-ए-बहाराँ हो मुबारक तुम को काश तुम होते शरीक-ए-शब-ए-तन्हाई भी है तमाशा-गह-ए-फ़ितरत का ये तुर्फ़ा अंदाज़ ख़ुद तमाशा नज़र आता है तमाशाई भी वा न हो जाएँ कहीं शिद्दत-ए-एहसास से लब छीन लो मुझ से मिरी क़ुव्वत-ए-गोयाई भी