कुछ भी तो हो सका न रक़म एहतियात से हर चंद उठ रहा था क़लम एहतियात से क्या ख़ूब इत्तिफ़ाक़ है ठोकर वहीं लगी रक्खे जहाँ जहाँ भी क़दम एहतियात से हम दूर दूर रह के भी कुछ मुत्तहिद से हैं कुछ यूँ किए हैं तू ने सितम एहतियात से तेरे करम की एक निशानी ही तो है ये दिल से लगाए बैठे हैं ग़म एहतियात से 'फ़हमी' हवा में ज़हर घुला है कुछ इस क़दर लेते हैं अब तो साँस भी हम एहतियात से