इस दर्जा भाग दौड़ के इतना कमाएँगे हम ज़िंदगी की शाम तलक घर बनाएँगे पहले तो ज़िंदगी की बहुत चाह थी हमें किस को ख़बर थी राह में ये मोड़ आएँगे कहते हैं कट ही जाती है उम्र-ए-दराज़ भी सो मुतमइन हैं अपने भी दिन बीत जाएँगे महरूमियों के दाग़ ना-आसूदा ख़्वाहिशें इन सब के साथ हम तुझे क्या मुँह दिखाएँगे मर कर भी ख़्वाहिशों से न मिल पाएगी नजात हम ख़्वाहिश-ए-बहिश्त के चक्कर में आएँगे अल्लाह मेहरबान भी आदिल भी है 'जलील' चलिए उसी से चल के ज़रा लौ लगाएँगे