कुछ दिन तो मलाल उस का हक़ था बिछड़ा तो ख़याल उस का हक़ था वो रात भी दिन सी ताज़ा रखता शबनम का जमाल उस का हक़ था वो तर्ज़-ए-बयाँ में चाँदनी था तारों से विसाल उस का हक़ था था उस का ख़िराम मौज-ए-दरिया लहरों का जलाल उस का हक़ था बारिश का बदन था उस का हँसना ग़ुंचे का ख़िसाल उस का हक़ था रखता था सँभाल शीशा-ए-जाँ तज्सीम-ए-कमाल उस का हक़ था बादल की मिसाल उस की ख़ू थी ताबीर-ए-हिलाल उस का हक़ था उजला था चंबेलियों के जैसा यूसुफ़ सा जमाल उस का हक़ था