कुछ एहतिमाम न था शाम-ए-ग़म मनाने को हवा को भेज दिया है चराग़ लाने को हमारे ख़्वाब सलामत रहें तुम्हारे साथ ये बात काफ़ी है दुनिया की नींद उड़ाने को हमारा ख़ून किसी काम का नहीं भाई ये पानी ठीक है लेकिन दिए जलाने को हमारी राख यूँही तो नहीं कुरेदते लोग हमारे पास कोई बात है छुपाने को तिरे बग़ैर भी हम जी रहे हैं और ख़ुश हैं ये बात कम तो नहीं है तुझे जलाने को हमारे ख़ून से लुथड़े हुए हैं हाथ उस के हमारे साथ मोहब्बत भी है ज़माने को वो जिन के पास कोई अक्स भी नहीं 'आमी' तड़प रहे हैं मुझे आईना दिखाने को