कुछ है जो ये गुमान न होता तो ठीक था सर पर ये आसमान न होता तो ठीक था अच्छा था गर ज़मीन न होती जहान में या फिर कोई जहान न होता तो ठीक था इंसान मेहमान है दो-चार रोज़ का उस पर ये इम्तिहान न होता तो ठीक था अपनी तलाश में तो न फिरता इधर-उधर इतना बड़ा मकान न होता तो ठीक था तुझ से मिरा मुआमला होता ब-राह-ए-रास्त ये इश्क़ दरमियान न होता तो ठीक था कैसा अजीब है कि मैं हूँ भी नहीं भी हूँ मेरा कहीं निशान न होता तो ठीक था