कुछ इस अदा से सफ़ीरान-ए-नौ-बहार चले सलीब दोश पे रख कर गुनाहगार चले निकल के कू-ए-मोहब्बत से सोए दार चले हमारे साथ न क्यूँ मौसम-ए-बहार चले तुम्हारी याद सही क़ुर्बत-ए-बदन न सही किसी तरह तो मोहब्बत का कारोबार चले हमारे दम से ग़म-ए-ज़िंदगी की अज़्मत है हमारे साथ सितम-हा-ए-रोज़गार चले इसी का नाम बहाराँ है कुछ कहो यारो चमन में हँसते हुए आए सोगवार चले हज़ार हम पे ख़राबी गुज़र गई लेकिन लहू से अपने तिरी अंजुमन सँवार चले इक एक साँस हैं सदियों का दर्द शामिल है तुम्हारी बज़्म में वो ज़िंदगी गुज़ार चले