यूँ ब-ज़ाहिर देखे तो यार सब वक़्त पड़ने पर यही बेकार सब मस्लहत है हक़ नज़र-अंदाज़ कर हक़ कहा जिस ने चढ़े वो दार सब हम अना की पोटली थामे रहे हाथ ख़ाली थे हुए वो पार सब ऐ ख़ुदा तू ने बनाई थीं वो क्या जिस की आँखों से हुए सरशार सब कुछ सुकूँ शायद मयस्सर आएगा छोड़ के देखा था ये घर-बार सब कोई ऐसा वक़्त तो फिर आए 'शम्स' नींद से जग जाएँ फिर इक बार सब