कुछ इस अदा से मोहब्बत-शनास होना है ख़ुशी के बाब में मुझ को उदास होना है मैं आज सोग मनाना सिखाने वाला हूँ इधर को आएँ जिन्हें महव-ए-यास होना है नाशिस्त-ए-रूह में पाकीज़गी है शर्त मगर बदन की बज़्म में बस ख़ुश-लिबास होना है मैं ख़ुद ही होता हूँ अपनी नशात का बाइ'स सो मुझ को ख़ुद मिरे ग़म की असास होना है अज़ल से मेरी हिफ़ाज़त का फ़र्ज़ है उन पर सभी दुखों को मेरे आस-पास होना है ये आशिक़ी तिरे बस की नहीं सो रहने दे कि तेरा काम तो बस ना-सिपास होना है