कुछ पाने की हसरत में जल जाने चले आए परवानों की बस्ती में दीवाने चले आए क़ीमत भी न मिल पाई मुझ को मिरे अश्कों की ख़िदमत में सितम-गर के नज़राने चले आए अल्लाह सितम कैसा बे-दर्द ज़माने का बे-यार सुतूनों को सब ढाने चले आए जब ज़ब्त न कर पाए इफ़्लास की शिद्दत हम बे-ज़ार ग़ुलामों में बिक जाने चले आए इक बूँद को तरसे हैं हम जैसे यहाँ 'तश्ना' उन के दर-ए-आ'ली पर मय-ख़ाने चले आए