मोहब्बत का जो ये अंजाम हो जाए तो हम जानें तिरा जल्वा वफ़ा पैग़ाम हो जाए तो हम जानें ख़िरद का सिलसिला आख़िर जुनूँ से मिल के रहता है जुनूँ बढ़ कर ख़िरद-अंजाम हो जाए तो हम जानें ये दुनिया है यहाँ पर आदमी तो लाख मिलते हैं जहाँ में आदमिय्यत आम हो जाए तो हम जानें तिरी दरगाह में मक़्बूल हैं जाह-ओ-हशम वाले ग़रीबों का भी कोई काम हो जाए तो हम जानें ये हम भी देख लें पत्थर में कैसे जोंक लगती है किसी सूरत से वो बुत राम हो जाए तो हम जानें नक़ाब-ए-रुख़ उलट ही दी मिरी गुस्ताख़ नज़रों ने मोहब्बत की सहर अब शाम हो जाए तो हम जानें क़दम कुछ ज़ब्त ओ जुरअत से उठाना शर्त है 'आलिम' मोहब्बत फिर अगर नाकाम हो जाए तो हम जानें