कुछ राज़ हैं ऐसे जो ख़बर तक नहीं पहुँचे ऐसे भी हैं जल्वे जो नज़र तक नहीं पहुँचे इक लम्हे को आया था सर-ए-बज़्म वो ख़ुश-रू जो घर से गए देखने घर तक नहीं पहुँचे छोटे थे जो क़ामत में जिन्हें झुक के मिला था उन हाथों के पत्थर मिरे सर तक नहीं पहुँचे उस गर्द से निकलो कि सफ़र का करें आग़ाज़ यारो तुम अभी राहगुज़र तक नहीं पहुँचे हर चंद कि दर छोड़ के तेरा हुए रुस्वा लेकिन कभी हम ग़ैर के दर तक नहीं पहुँचे क्या जानिए किन लोगों की क़िस्मत में हूँ 'आरिफ़' वो फल जो अभी शाख़-ए-शजर तक नहीं पहुँचे