कुछ तअल्लुक़ भी नहीं रस्म-ए-जहाँ से आगे उस से रिश्ता भी रहा वहम ओ गुमाँ से आगे ले के पहुँची है कहाँ सीम-बदन की ख़्वाहिश कुछ इलाक़ा न रहा सूद-ओ-ज़ियाँ से आगे ख़्वाब-ज़ारों में वो चेहरा है नुमू की सूरत और इक फ़स्ल उगी रिश्ता-ए-जाँ से आगे कब तलक अपनी ही साँसों का चुकाता रहूँ क़र्ज़ ऐ मिरी आँख कोई ख़्वाब धुआँ से आगे शाख़-ए-एहसास पे खिलते रहे ज़ख़्मों के गुलाब किस ने महसूस किया शोरिश-ए-जाँ से आगे जब भी बोल उट्ठेंगे तन्हाई में लिक्खे हुए हर्फ़ फैलते जाएँगे नाक़ूस ओ अज़ाँ से आगे जिस की किरनों से उजाला है लहू में 'अजमल' जल रहा है वो दिया काहकशाँ से आगे