कुछ ऐसा ए'तिबार उठा रस्म-ओ-राह का By Ghazal << क्या सुना तुम ने ज़माने स... हम जिस तरफ़ निकल पड़े वार... >> कुछ ऐसा ए'तिबार उठा रस्म-ओ-राह का हैरत में डाल देता है मिलना निगाह का ऐ रास्ते की धूल मुझे साथ ले के चल पत्थर समझ लिया है मुझ सब ने राह का बढ़ता गया है जितना अंधेरा शब-ए-फ़िराक़ देखा है रूप निखरा हुआ मेहर-ओ-माह का Share on: