कुछ ऐसा खेल खेला ज़िंदगी ने हमेशा दूर से देखा ख़ुशी ने वो मर्दों के बराबर आ रही थी फिर उस को आज़माया छिपकली ने पलट आएगा फिर सहरा से मजनूँ अगर रस्ता दिया तेरी गली ने मोहल्ला ग़ीबतें करने लगा है किसी का हाथ क्या पकड़ा किसी ने कहाँ वो आसमाँ क़दमों तले था कहाँ अब ला गिराया नौकरी ने पुराने ज़ख़्म ताज़ा हो रहे हैं कई टाँके उधेड़े हैं ख़ुशी ने जिसे हम ने मकीन-ए-दिल बनाया हमारा दिल दुखाया है उसी ने ख़ुदा-ए-अर्श ने देखा ज़मीं पर ये कैसा हाथ मारा मातमी ने अना की धज्जियाँ उड़ने लगी हैं ख़ुदी को चीर डाला बे-ख़ुदी ने ख़ुदा की क़ीमतें लगती हैं 'मूसा' ख़ुदा को बेच खाना है सभी ने