कुछ बचा ले अभी आँसू मुझे रोने वाले सानेहे और भी हैं रू-नुमा होने वाले वक़्त के घाट उतर कर नहीं वापस लौटे दाग़ मल्बूस-ए-मह-ओ-महर के धोने वाले दाएम आबाद रहे दार-ए-फ़ना के बासी फ़िक्र में रूह-ए-बक़ायाब समोने वाले थरथराती रहे अब ख़्वाह हमा-वक़्त ज़मीं सो गए ख़ाक-ए-अबद ओढ़ के सोने वाले जिस पे भी पाँव धरा मैं ने उसी नाव में आए आसार नज़र ख़ुद को डुबोने वाले अब लिए फिरता है क्या दामन-ए-सद-चाक अपना क्या हुए अब वो तिरे सीने पिरोने वाले जा निकलता है अचानक वहीं रस्ता मेरा दर प-ए-पा हों जहाँ ख़ार चुभोने वाले गर्द है हाथ में उन के मिरी किश्त-ए-ज़र-ख़ेज़ ख़ार-ओ-ख़स से जो अलावा नहीं बोने वाले ये भी इक तुर्फ़ा तमाशा है कि हैं अँधियारे रेशा-ए-शब में सितारों को पिरोने वाले कर गए ख़ुश्क भरी झील तअस्सुफ़ के कँवल सूख कर काँटा हुए रात भिगोने वाले दे गया है जो हमें अहद-ए-मरासिम उस का उस ख़ज़ाने को नहीं हम नहीं खोने वाले