कुछ ए'तिमाद का लहजा भी फ़िक्र-ओ-फ़न से मिला ये सिलसिला तो मुझे 'मीर' के सुख़न से मिला बिखर बिखर के मैं सिमटा हूँ एक मरकज़ पर ये हौसला तो मुझे तेरे हुस्न-ए-ज़न से मिला अजीब तौर से तू ने सदा लगाई थी बस एक कर्ब-ए-मुसलसल तिरे सुख़न से मिला तिरा ख़याल मुझे दस्तकें तो देता था तिरा पता मुझे ख़ुशबू-ए-पैरहन से मिला मैं बुझ गया था सवाद-ए-दयार-ए-ज़ुल्मत में चराग़-ए-राह तो उम्मीद की किरन से मिला भटक रहा था 'मजीदी' शब-ए-जुदाई में चराग़-ए-ज़ीस्त मुझे हुस्न-ए-गुल-बदन से मिला