कुछ ग़म-ए-ज़ीस्त के आलाम अभी बाक़ी हैं ज़िंदगी तेरे लिए काम अभी बाक़ी हैं जिन से वाबस्ता है शोहरत तिरे मय-ख़ाने की ऐसे टूटे हुए कुछ जाम अभी बाक़ी हैं शब की तारीकी ने दुनिया की बहारें लूटीं आश्ना-ए-सहर-ओ-शाम अभी बाक़ी हैं हम ने सय्याद को गुलशन से निकाला है मगर चार-सू फैले हुए दाम अभी बाक़ी हैं ख़ार गुलशन से निकाले गए लेकिन वो गुल जिन से गुलशन हुआ बदनाम अभी बाक़ी हैं कब इधर उट्ठेगी तू ऐ निगह-ए-शौक़ बता कितने पैग़ाम तिरे नाम अभी बाक़ी हैं रुक गया आ के कहाँ राह-ए-तलब में 'अंजुम' पए-मंज़िल तिरे दो-गाम अभी बाक़ी हैं