महव-ए-हैरत हूँ कि आख़िर ये तमाशा क्या है सुब्ह ख़ुद पूछ रही है कि उजाला क्या है इस बदलती हुई दुनिया का भरोसा क्या है सब इसी फ़िक्र में बैठे हैं कि होता क्या है बे-अमल हो तो समझिए कि है बे-सूद हयात जिस का मक़्सद न हो वो जीना भी जीना क्या है पूछता है ये चराग़ों में लहू जल जल कर तल्ख़ी-ए-दौर बता दे तिरी मंशा क्या है मेरी आँखों से ज़रा दिल में उतर कर देखो लोग कहते हैं जिसे इश्क़ वो होता क्या है हेच है इस के लिए दौलत-ए-दुनिया 'अंजुम' काश इंसान समझ ले मिरा रुत्बा क्या है