कुछ हिसाब ऐ सितम ईजाद तो कर किस क़दर ज़ुल्म किए याद तो कर ज़िंदा जा सकते हैं बाहर कि नहीं देख असीरों को अब आज़ाद तो कर ख़ाक क्यूँ छान रहा है बतला था भी दिल पास तिरे याद तो कर अरे मुँह ढाँप के रोने वाले दम उलट जाएगा फ़रियाद तो कर हाए क्या होगा बहार आने तक क़ैदी-ए-कुंज-ए-क़फ़स याद तो कर वो तसल्ली ही सही ऐ सय्याद कुछ मुअ'य्यन मिरी मीआ'द तो कर है तनफ़्फ़ुर जो बुतों से वाइज़ सिफ़त-ए-हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद तो कर जा कभी नज्द की जानिब भी 'अज़ीज़' रूह-ए-मजनूँ को ज़रा शाद तो कर