कुछ काम नहीं है यहाँ वहशत के बराबर सो तुम हमें ग़म दो कोई हिम्मत के बराबर कब लगता है जी राह-ए-सहूलत में हमेशा और मिलता है कब रंज ज़रूरत के बराबर आसाइश-ओ-आराम हो या जाह-ओ-हशम हो क्या चीज़ यहाँ पर है मोहब्बत के बराबर गुंजाइश-ए-अफ़्सोस निकल आती है हर रोज़ मसरूफ़ नहीं रहता हूँ फ़ुर्सत के बराबर भर लाए हैं हम आँख में रखने को मुक़ाबिल इक ख़्वाब-ए-तमन्ना तिरी ग़फ़लत के बराबर रख देंगे तिरे पाँव में हम मौज में आ कर दुनिया है कहाँ जान की क़ीमत के बराबर फिर कश्मकश-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ कार-ए-ज़ियाँ है जब जीत भी ठहरी है हज़ीमत के बराबर जीने में जो एहसास-ए-तफ़ाख़ुर है कहाँ है जीते चले जाने की नदामत के बराबर