कुछ न कुछ ख़्वाब पालते रहिए By Ghazal << ख़स्ता-जानी में कोई शाख़ ... गुनाह-गार-ए-वफ़ा लाएक़-ए-... >> कुछ न कुछ ख़्वाब पालते रहिए जिस्म घर से निकालते रहिए लुत्फ़ लेना है ज़िंदगी का तो ख़ुद को ख़तरों में डालते रहिए मेरी नज़रों में सिर्फ़ मंज़िल है आप कीचड़ उछालते रहिए कुछ तो बेहतर ज़रूर निकलेगा रोज़ ख़ुद को खँगालते रहिए Share on: