कुछ सुनाओ कि जी नहीं लगता गुनगुनाओ कि जी नहीं लगता धड़कनों में ज़रा तो हलचल हो पास आओ कि जी नहीं लगता कब से रूठी मैं तुम से बैठी हूँ अब मनाओ कि जी नहीं लगता मुझ पे हक़ है तुम्हारा जान-ए-जाँ हक़ जताओ के जी नहीं लगता मुझ से इस्लाह लो रक़ीबों पर जी जलाओ कि जी नहीं लगता ख़ुद को कितना मैं तोड़ सकती हूँ आज़माओ कि जी नहीं लगता मेरी दुनिया की आफ़्ताब हो तुम जगमगाओ कि जी नहीं लगता अब न तारों से रात मानेगी चाँद लाओ कि जी नहीं लगता आख़िरी आस टूटने को है लौट आओ कि जी नहीं लगता