कुछ ज़ियादा न कम हुई लबरेज़ By Ghazal << लहू-रंग कैसे हवा बन गया ह... कुछ देर उस की लाश पे रोना... >> कुछ ज़ियादा न कम हुई लबरेज़ हद-ए-क़ौल-ओ-क़सम हुई लबरेज़ तेरी यादों ने दिल को तड़पाया दर्द से चश्म-ए-नम हुई लबरेज़ मुझे किरदार काटने पड़े फिर जब कहानी क़लम हुई लबरेज़ इतनी मुश्किल ज़मीं में नज़्म 'दुआ' आँख कर के रक़म हुई लबरेज़ Share on: