कुफ़्र भी रुख़्सत है ईमाँ राएगाँ करने के बाद करते हैं ज़िक्र-ए-ख़ुदा ज़िक्र-ए-बुताँ करने के बाद अश्क उमँड आते हैं ख़ुद ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ करने के बाद दर्द बटता है किसी को राज़दाँ करने के बाद इख़्तियार-ए-नाज़ क्या हो जब्र-ए-फ़ितरत का गिला सी दिए लब आग सीने में निहाँ करने के बाद बन गई फ़ितरत हरीफ़-ए-शेवा-ए-इज़हार-ए-ग़म हँस रहा हूँ अश्क आँखों से रवाँ करने के बाद सैकड़ों अफ़्साने इक इक हर्फ़ में पाता हूँ मैं उस हसीं का नाम ज़ेब-ए-दास्ताँ करने के बाद गुल्सिताँ की हर कली हर फूल तेरा है मगर ख़ार-ओ-ख़स से पाक सह्न-ए-गुलिस्ताँ करने के बाद मिट गईं 'नातिक़' ग़म-ए-जानाँ की सारी कुल्फ़तें शायरी में शरह-ए-रंज-दो-जहाँ करने के बाद