न जाने कितने फ़िशार झेले वफ़ा में परवाज़-ए-जाँ से पहले ख़ुदा का क़ाइल था मैं न हमदम अज़ाब-ए-इश्क़-ए-बुताँ से पहले सबब यही था कि चार तिनके मिरी उमीदों का गुल्सिताँ थे हुई थी बर्क़-ओ-शरर की यूरिश चमन में कब आशियाँ से पहले न सोचा समझा न देखा भाला है कौन मुश्ताक़ कौन प्यासा उन्हों ने तक़्सीम की है मय की जहाँ से चाहा वहाँ से पहले ये हम ने सोचा था हाल अपना कभी न उन से बयाँ करेंगे मगर पहुँचते ही चश्म-ए-तर ने सुना दिया सब ज़बाँ से पहले उदास कलियाँ फ़सुर्दा ग़ुंचे शिकस्ता शाख़ें ख़मोश बुलबुल कहाँ थी गुलशन में दिलकशी ये वरूद-ए-फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ से पहले सितम-कशों से किसी ने पूछा सबब जो ताराजी-ए-चमन का उड़ा के ख़ाक आशियाँ के बोले उठा था शो'ला यहाँ से पहले ये शौक़-ए-मंज़िल का था करिश्मा उसी ने ताब-ओ-तवाँ अता की कहाँ तो थे कारवाँ के पीछे पहुँच गए कारवाँ से पहले कहाँ की मंज़िल कहाँ का जादा ये सब फ़रेब-ए-नज़र था 'नातिक़' खुलीं जो आँखें उसी जगह थे क़दम उठा था जहाँ से पहले