कुफ़्र से मतलब है न इस्लाम से है ग़रज़ मा'शूक़-ए-ख़ुश-अंदाम से है ग़रज़ ख़ुम से सुबू से जाम से काम है हम को मय-ए-गुलफ़ाम से दफ़्न कर के हाए कहता है कोई क़ब्र में अब सो रहो आराम से क़ाफ़-ओ-लाम-ओ-क़ाफ़ है हर दम हमें ख़ुश अदू है वाव साद-ओ-लाम से क्या ग़रज़ आएँ अयादत को वो क्यूँ उन को कब फ़ुर्सत है अपने काम से हज़रत-ए-आदम जो निकले ख़ुल्द से हम भी निकले कूचा-ए-असनाम से चश्म-ए-जानाँ की ग़लत तश्बीह है इस को कुछ निस्बत नहीं बादाम से जो हलावत इस में है उस में कहाँ क़ंद फीका है तिरी दुश्नाम से जाएँ हम कहिए तो ऐ 'साबिर' कहाँ वास्ता है इक बुत-ए-ख़ुद-काम से