रौशनी तक रौशनी का रास्ता कह लीजिए रात को शाम-ओ-सहर का फ़ासला कह लीजिए दे गई कितनी बहारें एक फ़स्ल-ए-आरज़ू रंग-ओ-बू को मौसमों का ख़ूँ-बहा कह लीजिए गूँजती है उम्र-ए-वीराँ में तमन्ना की थकन हर्फ़-ए-ग़म को गुम्बद-ए-जाँ की सदा कह लीजिए कुंद आख़िर कर गईं तलवार को ख़ूँ-रेज़ियाँ दोस्ती को दुश्मनी की इंतिहा कह लीजिए बाल-ओ-पर खुलते नहीं जिन के नशेमन की तरफ़ उन उड़ानों को हवाओं की ग़िज़ा कह लीजिए मौसम-ए-गुल देखिए खुलते दरीचों के तले बाम-ओ-दर को शहर की आब-ओ-हवा कह लीजिए कुछ नहीं मिलता 'समद' पत्थर को तेशे के सिवा आज़री को आज़री नाम-ए-ख़ुदा कह लीजिए