कुफ़्र-ए-इश्क़ आया बदल मुझ मोमिन-ए-दीं-दार तक नौबत-ए-बा-संदल-ओ-क़शक़ा है बल ज़ुन्नार तक अष्ट का अश्लोक इक राहिब ने बुत-ख़ाने के बीच मुझ को बतलाया कि भूला ग़ैर ज़िक्र-अज़़कार तक शो'बदा दुनिया का कम फ़ुर्सत बहुत है जूँ हुबाब ज़िंदगी है ता-ज़माना वा'दा-ए-इक़रार तक काम है मतलब से चाहे कुफ़्र होवे या कि दीं जा पहुँचता है किसी सूरत से अपने यार तक 'आफ़रीदी' छोड़ मत हरगिज़ दर-ए-पीर-ए-मुग़ाँ हाथ आवे दुख़्तर-ए-रज़ साग़र-ए-सरशार तक