कुंज-ए-दिल में है जो मलाल उछाल रौशनी के कँवल उछाल उछाल ढाल तू अपने महर-ओ-माह-ओ-नुजूम दिन उछाल अपने माह-ओ-साल उछाल बे-सिपर है ये मेरी तन्हाई ऐ मिरी जान अपनी ढाल उछाल अपनी आसूदगी-ए-जाँ के लिए मेरे हिस्से में कुछ वबाल उछाल हो कोई शेर शेर-ए-शोर-अंगेज़ फ़िक्र कोई कोई ख़याल उछाल जो तुझे ख़ुद से मुनफ़रिद कर दे कुछ तो ऐसी नई मिसाल उछाल आएगा फिर कोई जवाब उस का तो फ़ज़ा में कोई सवाल उछाल ख़ौफ़ आने लगा 'कमाल' से अब मेरे हिस्से में कुछ ज़वाल उछाल