कुशाद ज़ेहन-ओ-दिल-ओ-गोश की ज़रूरत है ये ज़िंदगी है यहाँ होश की ज़रूरत है सुनाई देगी यक़ीनन ज़मीर की आवाज़ मख़ातबीन-ए-सुबुक-गोश की ज़रूरत है अब एहतियाज नहीं सर्व-क़ामतों की मुझे मुझे तो अब किसी हम-दोश की ज़रूरत है ख़रोश-ए-ख़ुम का भरम खोलना है क्या मुश्किल बस एक रिंद-ए-बला-नोश की ज़रूरत है निगार-ए-सुब्ह के आँसू समेटने के लिए गुलों को वुसअ'त-ए-आग़ोश की ज़रूरत है कहीं फ़क़त मुतकल्लिम सुकूत की हाजत कहीं तकल्लुम-ए-ख़ामोश की ज़रूरत है