क्या आँख मिलाओगे तुम देखने वालों से रहते हो अँधेरों में डरते हो उजालों से बिखरी हुई ज़ुल्फ़ें हैं या 'मीर' की ग़ज़लें हैं क़द्र इन की कोई पूछे आशुफ़्ता-ख़यालों से किस प्यार से मिलते हैं नाक़ूस-ओ-अज़ाँ दोनों किस जन्म का नाता है मस्जिद का शिवालों से इस्लाम मसीहाई रब्बी-अरिनी गीता क्या कुछ नहीं पाया है दुनिया ने ग्वालों से दो बूँद ही काम आईं तपते हुए सहरा की कुछ आँख से टपका दो कुछ पाँव के छालों से 'फ़य्याज़' वो पूछें तो तकलीफ़ तुझे क्या है हम देंगे जवाब उन को कुछ और सवालों से