न सही ख़ुल्द जहन्नुम ही अता हो तो सही कोई ना-कर्दा गुनाहों की सज़ा हो तो सही मैं तो सब कुछ तिरे क़दमों पे निछावर कर दूँ कुछ मिरे पास मोहब्बत के सिवा हो तो सही क्यों फ़रिश्ते मुझे जन्नत में लिए जाते हैं मुझ गुनहगार ने कुछ जुर्म किया हो तो सही हर तरफ़ रेत का दरिया ही नज़र आता है जाने वालों का निशान-ए-कफ़-ए-पा हो तो सही तुम तो हर शाख़ से हर फूल से झाँक उठते हो तुम को पलकों में छुपा कर न रखा हो तो सही फूल के दिल में भी काँटों की जगह होती है फूल जैसों को मगर इस का पता हो तो सही आबले फूटें तो सहरा को बना दें गुलज़ार ऐसा 'फ़य्याज़' कोई आबला-पा हो तो सही