क्या अश्क की ज़बान में ग़म बोलते नहीं इस बात पर न जाओ कि हम बोलते नहीं तुम तो सवाल-ए-शौक़ पे तस्वीर बन गए दुनिया ने सच कहा है सनम बोलते नहीं दिल तोड़ना गुनाह है चाहे वो कुफ़्र हो इस मसअले पे अहल-ए-हरम बोलते नहीं आवाज़ दे रही हैं हमें ताज़ा उलझनें हर चंद उन की ज़ुल्फ़ के ख़म बोलते नहीं वो हो गए हैं मोहर-ब-लब बा'द-ए-इल्तिफ़ात एहसान कर के अहल-ए-करम बोलते नहीं नज़रें तो छेड़ती हैं फ़साने नए नए तुम बोलते नहीं कभी हम बोलते नहीं मग़रूर हो अगर कोई इस शान का तो हो सज्दों से उन के नक़्श-ए-क़दम बोलते नहीं