वो तेरी याद के लम्हे तिरे ख़याल के दिन इलाज-ए-दर्द के ज़ख़्मों के इंदिमाल के दिन वो इक रची बसी तहज़ीब अपने पुरखों की वो दो या चार सही थे मगर मिसाल के दिन मुझे तो याद है अब तक वो क्या ज़माना था तिरे जवाब का मौसम मिरे सवाल के दिन हर एक पल वो कभी रूठना कभी मनना नदामतों की वो घड़ियाँ वो इंफ़िआल के दिन मैं कुछ भी सुन न सकी थी वो ख़ौफ़ था 'शबनम' उसे भी होश भला कब था अर्ज़-ए-हाल के दिन