क्या अज़िय्यत है कि बे-कार पड़े हैं घर में उस पे तन्हाई के अम्बार पड़े हैं घर में मेरे सर्वत की किताबें तिरी यादों की घुटन ख़ुदकुशी के कई औज़ार पड़े हैं घर में इक तिरी याद का रोना हो तो रो भी लूँ मैं और सौ तरह के आज़ार पड़े हैं घर में क्यों न हाकिम को कटे हाथ का तोहफ़ा भेजूँ अहद-ए-कम-ज़र्फ़ है फ़नकार पड़े हैं घर में