क्या बताऊँ कि अब ख़ुदा क्या है आइने में ये दूसरा क्या है सर से पा तक मिरी निगाह में हो मुँह छुपाने से फ़ाएदा क्या है मुस्कुराता है जान ले कर भी अब ख़ुदा जाने चाहता क्या है दा'वा-ए-इश्क़ हम तो कर बैठे तू सुना तेरा फ़ैसला क्या है है बहुत कुछ अभी तो पर्दे में देखता जा अभी हुआ क्या है इल्म भी इक हिजाब है नादाँ जानता है तो जानता क्या है वो ख़ुदा हो कि नाख़ुदा ऐ 'दिल' डूबना है तो सोचता क्या है