क्या बताऊँ कि किस गुमान में हूँ मुस्तक़िल एक इम्तिहान में हूँ आबला-पा हूँ और सफ़र में हूँ पर-बुरीदा हूँ और उड़ान में हूँ ख़ुद-सरी रख के शाहज़ादी सी कुछ कनीज़ों के दरमियान में हूँ तू कि तूफ़ाँ मुझे समझ बैठा ग़ौर से देख बादबान में हूँ आप ने ख़त नहीं लिखा वर्ना मैं तो अब भी उसी मकान में हूँ उस की आँखों में डूब कर मैं 'निशात' ख़ूब-सूरत से इक जहान में हूँ