क्या बताएँ ग़म-ए-फ़ुर्क़त में कहाँ से गुज़रे मौसम-ए-गुल से जो निकले तो ख़िज़ाँ से गुज़रे दिल से आँखों से मकीनों से मकाँ से गुज़रे दर्द फिर दर्द है जब चाहे जहाँ से गुज़रे हुस्न की शोख़-सरी का यही हासिल निकला आतिश-ए-इश्क़ बढ़ी आह-ओ-फ़ुग़ाँ से गुज़रे रक़्स करते ही रहे ख़्वाब धुनों पर लेकिन साँस के तार सभी सोज़-ए-निहाँ से गुज़रे बा-वज़ू हो के मिरा ज़िक्र जो करते थे कभी आज पलटे हैं ज़बाँ से वो बयाँ से गुज़रे वो मोहब्बत हो के ईसार-ओ-वफ़ा हो 'ज़ाकिर' इश्क़ के तीर शब-ओ-रोज़ कमाँ से गुज़रे