क्या दे गई फ़रेब किसी की नज़र मुझे दुनिया का होश है न कुछ अपनी ख़बर मुझे जीने की आरज़ू है न मरने की आरज़ू ऐसा दिया है इश्क़ ने इक दर्द-ए-सर मुझे मूसा गए थे तूर पे जल्वे को देखने आता है चार-सू तिरा जल्वा नज़र मुझे जब तक शुऊ'र-ओ-अक़्ल मिरे साथ में रहे लगती थी राह-ए-इश्क़ बहुत पुर-ख़तर मुझे वो हम-नशीं था मेरा मैं था उस का हम-नशीं अब क्यों ख़फ़ा है वो नहीं उस की ख़बर मुझे अल्लाह रे ये हुस्न-ए-तसव्वुर की वुसअ'तें जिस सम्त मैं ने देखा वो आए नज़र मुझे जाना है मुझ को दूर अभी और ऐ 'अज़ीज़' बिल्कुल रवा नहीं है कहीं भी हज़र मुझे