क्या देखते हो राह में रुक कर यहाँ वहाँ है क़त्ल-ओ-ख़ूँ का एक सा मंज़र यहाँ वहाँ ज़ेर-ए-नगीं उसी के सभी क़र्या-ओ-दयार उस के ही सब हैं ख़ेमा-ओ-लश्कर यहाँ वहाँ है दरमियान-ए-ख़ंजर-ओ-सर फ़ासले का फ़र्क़ वर्ना सरों पे है वही ख़ंजर यहाँ वहाँ शीशे के सब मकाँ हैं शिकस्ता इधर उधर बिखरे पड़े हैं शहर में पत्थर यहाँ वहाँ महफ़ूज़ रह गया न कोई रास्ता न मोड़ जाया करो न घर से निकल कर यहाँ वहाँ लगता है अब उलटने को है ये बिसात-ए-शब सरगोशियाँ यही हैं बराबर यहाँ वहाँ 'मोहसिन' अजीब हब्स का आलम है और मैं कोई दरीचा है न कोई दर यहाँ वहाँ