क्या ढूँडते हो अब जरस-ए-रफ़्तगाँ की धूल इक कारवाँ के साथ गई कारवाँ की धूल कल तक थे मेरा क़ाफ़िला हम जिस के दोस्तो अंजाम-ए-कार अब हैं उसी कारवाँ की धूल मदफ़न तिरी गली में बनाने चले तो हैं ये आँधियाँ बताएँगी हम हैं कहाँ की धूल रह में ये कौन आबला-पायान-ए-शौक़ हैं मुड़ मुड़ के देखती है जिन्हें कारवाँ की धूल लर्ज़ां हैं बाम-ओ-दर पे गई महफ़िलों के साए आँखों में उड़ रही है दयार-ए-बुताँ की धूल कैसे तुम्हारी प्यास बुझाएँ मुसाफ़िरो हम तो हैं एक चश्मा-ए-रेग-ए-रवाँ की धूल दामन में कौन बाँधे 'मुसव्विर' हमें यहाँ गर्द-ए-मज़ार हम न किसी आस्ताँ की धूल