क्या दिलकशी-ए-गेसू-ए-जानाँ है आज-कल दुनिया ब-क़ैद-ए-कुफ्र मुसलमाँ है आज-कल ख़ुद हुस्न इंक़लाब-ब-दामाँ है आज-कल हाथों में उन के मेरा गिरेबाँ है आज-कल तारे हैं आब आब तो ग़ुंचे अरक़ अरक़ अपने किए पे कोई पशेमाँ है आज-कल इंसान को नवाज़े जो इंसान की तरह ऐसा भी कोई दुनिया में इंसाँ है आज-कल नादाँ ये इख़्तियार ब अंजाम जब्र है गुलशन भी अपने वक़्त का ज़िंदाँ है आज-कल ख़ालिक़ है आप अपनी परेशानियों का वो दुनिया में जो बशर भी परेशाँ है आज-कल दुनिया-ए-हुस्न-ए-ज़न से अलग हो के देखिए वज्ह-ए-सुकूँ चमन है न ज़िंदाँ है आज-कल बर्बादियाँ भी तिश्ना-ए-तकमील हैं 'शिफ़ा' गर्दिश में ख़ुद भी गर्दिश-ए-दौराँ है आज-कल