क्या फ़साने में मिरा नाम कहीं होता है तेरे होंटों पे नहीं है तो नहीं होता है तू जिसे ढूँढता फिरता है ज़माने भर में अपने दिल में तू ज़रा झाँक वहीं होता है कितने सादा हैं ये कश्ती के मुसाफ़िर जिन को ना-ख़ुदाओं की ख़ुदाई पे यक़ीं होता है तोड़ कर बंद-ए-क़बा चाक-गरेबाँ हो कर रंग वहशत का मिरी और हसीं होता है वो जताने को ये आता है कि मैं आता हूँ वर्ना ध्यान उस का सदा और कहीं होता है जबकि बाक़ी है बहुत उस की बुलंदी का सफ़र ज़िक्र इंसाँ का सर-ए-अर्श-ए-बरीं होता है मत कहो उस को ज़ियाँ जिस से ख़ुशी मिलती हो वक़्त ऐसे कभी ज़ाएअ' तो नहीं होता है मय-कदे में ही मिलेगा तुझे तेरा 'आदिल' उस को जाना है किधर रोज़ वहीं होता है