क्या ग़रज़ इस से किसी को कितना है दिल-गीर कौन देखना है ये पहन कर मर गया ज़ंजीर कौन लोग शरमाते हैं क्यों सर पर उसे रखते हुए ले गया है छीन कर दस्तार की तौक़ीर कौन पेट की मजबूरियाँ फ़नकार तक भी आ गईं वर्ना दिलबर की बना कर बेचता तस्वीर कौन मेरी आँखों के दरीचे ख़ून में तर हो गए ख़ून में तर ख़्वाब की बतलाएगा ता'बीर कौन इस फ़रिश्तों के जहाँ में सिर्फ़ मैं इंसान हूँ होता फिर मेरे अलावा क़ाइल-ए-तक़्सीर कौन हर किसी को दस्तरस है गर्दिश-ए-अय्याम तक मौत के अंधे सफ़र की खींचता तस्वीर कौन किस को फ़ुर्सत है यहाँ ख़ुद-एहतिसाबी के लिए देखता है 'जान' अपनी आँख का शहतीर कौन