याद क्या क्या लोग दश्त-ए-बे-कराँ में आए थे रंग लेकिन कब ये चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ में आए थे किस तमन्ना से तुम्हें देखा था किस चाहत से हम रक़्स करते हल्क़ा-ए-वारफ़्तगाँ में आए थे सूरतें क्या क्या दिल-ए-आईना-गर में बस गईं हम से बे-सूरत भी तो बज़्म-ए-जहाँ में आए थे सादगी से हम ने समझा था हमारा ज़िक्र है तज़्किरे कुछ और ही उन के बयाँ में आए थे हर नई मुश्किल पे हम सोचा किए हैं देर तक लोग पहले भी तो कुछ शहर-ए-बुताँ में आए थे ये गुल-ए-तर की सी ख़ुश्बू किस तरफ़ से आ गई हम बगूले थे भला कब गुलिस्ताँ में आए थे क्यूँ हमारे साँस भी होते हैं लोगों पर गिराँ हम भी तो इक उम्र ले कर इस जहाँ में आए थे