क्या ग़म है अगर वो मिरा दीवाना नहीं है दिल मेरा भी आबाद है वीराना नहीं है पत्थर को बसाऊँगा नहीं इस में कभी मैं दिल मेरा हरम है कोई बुत-ख़ाना नहीं है झुकता है तू महबूब की दहलीज़ पे क्यूँकर ये दर तो मिरे सर दर-ए-जानाना नहीं है वो आह-ओ-फ़ुग़ाँ तेरी भला क्यों ही सुनेगा बिस्मिल तिरा अंदाज़ ग़रीबाना नहीं है तू बोल कि हो कैसे ख़ुदा तुझ से मुख़ातिब गुफ़्तार तिरी तर्ज़-ए-कलीमाना नहीं है वो शम्अ' करे फ़ख़्र भला ख़ुद पे तो कैसे दहलीज़ पे जिस की कोई परवाना नहीं है बोतल को लिए और कहाँ फिरता रहूँ मैं साक़ी तिरे मयख़ाने में पैमाना नहीं है ख़्वाबों में 'ज़ुहैब' आता है मेरे वो बराबर ऐसा नहीं उस से मिरा याराना नहीं है