क्या गुज़र कीजिए सय्याद-ए-दिल-आज़ार के पास बर्ग-ए-गुल फेंकता है मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार के पास तेरे बीमार की बालीं पे खड़ी है हसरत मौत बैठी नज़र आती है वो ग़म-ख़्वार के पास बार बार आ के वो ठहराते हैं सौदा दिल का घर उन्हों ने जो बनाया है तो बाज़ार के पास शाख़-ए-गुल देख के सामान-ए-ख़लिश याद आया रख दिया पारा-ए-दिल दिल को हर ख़ार के पास तेरे दरवाज़ा पे फ़ित्नों ने लिया दम आ कर थक के बैठी है क़यामत तिरी दीवार के पास ज़ाहिदा रहमत-ए-बारी भी ब-रंग-ए-तौबा आ गई टूट के रिंदान क़दह-ख़्वार के पास मेरी ख़्वारी ही क़यामत में मिरे काम आई कोई आया न 'वफ़ा' मुझ से गुनहगार के पास